सतरंगी जीवन #कहानीकार प्रतियोगिता लेखनी कहानी -16-Aug-2023
भाग ११
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बुद्धनी और शांति देवी चाय पीते हुए बातें कर रही थी।
चाय का घूंट पीते हुए वो अपने दूसरे पति फूलचंद के बारे में बता रही थी कि जब रेल से कट कर अपनी जान लेना चाहती थी तो उसने किस तरह उसकी जान बचाई...
अब आगे..
"दीदी जी फूलचंद हमरी ऐसी हालत देख अपनी पत्नी को याद कर अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रहा था।साल भर पहले ही उसकी पत्नी बच्चे को जन्म देते हुए मर गई थी, ना बच्चा बच पाया और ना पत्नी। बहुत मुश्किल से खुद को संभाला था ऊ…, और अब एक अंजान औरत यानी हमरी जान तो बचा दी पर हमरे गर्भ में फूटे अंकुर को ना बचा पाया।"
"हम जब तक अस्पताल में रही, फूलचंद हमरी देखभाल करता।जब डॉक्टर ने कहा अब इसे घर ले जा सकते हैं ।
..तो कहां जाएगी हम.. हमरा इस दुनिया में अब कोई घर नहीं है। हमको छोड़ आओ बाबू.. उसी रेलवे पटरी पर.. काहे बचाए तुम हमको... कहां जाएं हम... कोई नहीं है इस दुनिया में हमरा। हम बड़बड़ाते रहि"
हमरा सब अतीत जानकर कि... हमका पति छोड़ दिया ऊ भी जब हम माँ बनने को थी.. ई फूलचंद हमको अपनाने को तैयार हो गया।
ऊ हमसे बोला...
" क्यों कहती हैं तूंँ कोई नहीं है तेरा, मैं हूँ ना।
रहेगी मेरे साथ.. पत्नी के मरने के बाद से बड़ा अकेला हो गया हूं। साल भर से ढंग का खाना भी नहीं खाया, बनाना सीखा ही नहीं।बस चने मुरही खाकर ही जिंदा हूँ।
बनाएगी तूं मेरे लिए दाल भात?
उसकी इस बात ने ना जाने कहां से जीने की उम्मीद जगा दी हम में और हम भी इनकार ना कर पाई, जिसने जान बचाई वो जीवन भर साथ निभाने को तैयार था... ऊं तो मेरे लिए फरिस्ता बन कर आया था।
अस्पताल से जाते ही चर्च पहुंच गया हमको लेकर फूलचंद। ऊ भी ईसाई है ना.. तो हम भी अब उसी के धर्म के हो गए।"
ये बात शांति के पति शैलेन्द्र जी ने भी उसे बताई थी..
उन दिनों अंग्रेजी सरकार हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाने के लिए हर तरह का प्रलोभन देती या जो प्रलोभनों से अपना धर्म बदलने को तैयार नहीं होता उन पर बहुत अत्याचार करती। कईयों को जान से मार डाला था सिर्फ इसलिए क्योंकि वो अपना धर्म नहीं बदले। उन दिनों रांची के अधिकतर बंगाली हिंदू अपनी जान बचाने के लिए ईसाई धर्म अपना रहे थे।
फूलचंद भी उन्हीं में से एक था। बुद्धनी सरना हिंदु की बेटी थी पर जब पति के साथ-साथ मां बाप ने भी त्याग दिया तो धर्म क्या था, वो तो बस इंसानियत के धर्म का पालन करने के लिए फूलचंद के साथ साथ चर्च जा पहुंची। जहां अगले ही दिन उसका भी धर्म परिवर्तन करा दिया गया फिर उनका विवाह हुआ और बुद्धनी को नए जीवन के साथ नया जीवन साथी मिला।
उस दिन काफी देर बैठने के बाद जब बुद्धनी अपने घर जाने को उठी तो बिस्तर पर सोया शांति का बेटा उसका आंचल अपने छोटे छोटे हाथों से पकड़ लिया।
"देखा बुद्धनी तूने इसे दूध पिलाया तो कैसे तुझे पहचान गया।इसी तरह रोज आ जाया कर।मैं भी यहां अकेली पड़ जाती हूं, फिर तबियत भी ठीक नहीं रहती है।अब मुश्किल लग रहा है कैसे इसको संभाल पाऊंगी। "
"आप कोनो चिंता ना करो दीदी जी, हम रोज यहां दूध देने आवत ही हैं, आ जाही बाबू साथ खेलने। अब आप कोनो भारी काम ना करना, हम हैं ना हमको कह देना। लगत है अगले महीना आ जाही एकर भाई बहन।"
"जो भी आए ,बस स्वस्थ रहे।"
"बिल्कुल तगड़ा हट्टा - कट्टा होई... हमार गाय का दूध पी कर कोई कमजोर नहीं रह सकत! खूब चारा पानी करती हैं। बहुते बढ़िया नसल की है हमरी गाय।खूब गाढ़ा मीठा दूध देती है। हम आज ही से तोहार लई घी बनाने का तैयारी शुरू कर देब।"
बुद्धनी रोज शांति देवी के पास आती , दोनों साथ में चाय पीती और ,बुद्धनी घंटों बच्चे को संभालती। शांति के दूसरे बेटे का जन्म हुआ तो दाई का काम भी बुद्धनी ने ही किया। वो रात बहुत भयानक थी, खूब आंधी तुफान और उसके बाद जोरों की बारिश।ऐसे में हस्पताल ले जाना मुश्किल था,ना कोई गाड़ी सवारी मिलती और ना ही रात के दो बजे अस्पताल में कोई डॉक्टर मिलता।
बुद्धनी ने शांति को बताया था कि उसकी माँ दाई का काम जानती थी।
उन दिनों वैसे भी घर में ही दाई को बुलाया जाता था बच्चे की नार काटने के लिए!
बुद्धनी भी अपनी मां से यह सब सीखी थी।
उसने शांति से कहा रखा था, " जैसे ही दर्द उठे हमको बस एक आवाज लगा देना, हम सब संभाल ली।"
उसका घर थोड़ी ही दूर पर था।
उस दिन तो वो सुबह ही जब शांति को देखी, उसके चेहरे और पेट की तरफ नजर जाते ही पहचान गई थी।बच्चा आज कल में ही होने वाला है। वो तो शाम को भी आकर रोटी बनाते समय वहीं रुकने के लिए कह रही थी।पर शांति ने ही मना कर दिया था। बुद्धनी अपना घर और गायों की सेवा करने के साथ-साथ शांति का सारा काम करने को तैयार रहती।
शांति कहती," मद्रास से यहां तेरे पास ही आई हूं।तुझसे ना मिलती तो मेरा क्या होता"
" सब उस ईश्वर का रचा है दीदी जी। मुझे बहन मिल गई।"
वैसे बुद्धनी उम्र में और जीवन के तजुर्बे.. दोनों में ही शांति से बड़ी और समझदार थी पर अपना आदर दिखाने के लिए शांति को दीदी जी ही कहती।
" आप हमको दीदी जी मत कहा करो।"
कई बार शांति ने बुद्धनी से कहा था।
शांति के चार बेटे और दो बेटियां, सभी को मां की तरह ही तो पाला था बुद्धनी ने।
और बच्चे भी अपनी मां यानी शांति को दीदी मांँ कहते और बुद्धनी को दाई मांँ।
बुद्धनी और शांति के मेल को तोड़ने और एक दूसरे के बीच फूट डालने वालों की भी कमी नहीं थी।
...., कौन थे वो लोग जो शांति और बुद्धनी को एक दूसरे के खिलाफ करना चाहते थे और आखिर वो ऐसा क्यों चाहते थे..??
जानने के लिए जुड़े रहिए कहानी के अगले भाग से।
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कविता झा'काव्य'
#लेखनी
#कहानीकार प्रतियोगिता
Babita patel
03-Sep-2023 09:47 AM
Fantastic part
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